कुम्भ समुद्र मंथन की कथा
कुम्भ समुद्र मंथन हिंदू पुराणों का एक प्रसिद्ध और रोमांचक कथा है, जो विशेष रूप से विष्णु पुराण, भागवत पुराण, और रामायण में वर्णित है। यह कथा देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन (चेरना) के दौरान उत्पन्न हुई अमृत कलश के लिए हुए संघर्ष पर आधारित है।

कथा का प्रारंभ:
(दानव) और देवताओं के बीच सदियों से संघर्ष चल रहा था। देवता हमेशा दानवों से पराजित होते थे। इस पर देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी। भगवान विष्णु ने देवताओं को समुद्र मंथन करने का मार्गदर्शन दिया, जिससे अमृत (अमृतरस) प्राप्त होगा और वे शक्तिशाली हो जाएंगे।

समुद्र मंथन की योजना:
देवताओं ने भगवान विष्णु के आदेश से दानवों से मदद मांगी। दोनों ने मिलकर मंथन करने का निर्णय लिया। मंथन के लिए मंदर पर्वत को मंथन यंत्र (मंथनी) के रूप में इस्तेमाल किया गया और इसकी धुरी के रूप में राजा कुबेर का नाग, जिसे ‘वासुकि’ कहा गया, को चुना गया।
समुद्र मंथन की प्रक्रिया:
- देवता और दानव मंदर पर्वत को समुद्र में डालते हैं और नाग वासुकि को मंथन के लिए धागे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
- जब मंथन शुरू हुआ, तो सबसे पहले विष, गरल (poison) समुद्र से निकलकर दुनिया में फैल गया। इस विष को भगवान शिव ने पी लिया, ताकि सभी की रक्षा हो सके। भगवान शिव का कंठ नीला हो गया, इसलिए उन्हें “नीलकंठ” भी कहा जाता है
- इसके बाद समुद्र से अनेक अन्य वस्तुएं भी निकलीं, जैसे रत्न, दिव्य व्रत, और दुर्लभ आभूषण।
- अंत में, सबसे महत्वपूर्ण चीज़ जो समुद्र मंथन से निकली, वह थी अमृत (immortality का रस), जो देवताओं और दानवों के बीच बंटने वाला था।
अमृत कलश की प्राप्ति और मोह:
अमृत के लिए देवता और दानवों के बीच संघर्ष हुआ। भगवान विष्णु ने माया का प्रयोग किया और मोहिनी रूप धारण कर लिया। मोहिनी रूप ने दानवों को छलकर उन्हें अमृत नहीं दिया, बल्कि देवताओं को दिया।
दानवों का धोखा:
दानवों ने देवताओं से अमृत को छीनने की कोशिश की, लेकिन मोहिनी ने उन्हें धोखा देकर अमृत का वितरण देवताओं के बीच किया। इस तरह देवता अमर हो गए और दानवों को अमृत नहीं मिला।
कुम्भ और अमृत कलश:
कभी अमृत कलश को लेकर देवता और दानवों के बीच संघर्ष हुआ और वह अमृत कलश कुम्भ में रखा गया। इसलिए इस घटना के कारण यह पर्व कुम्भ मेला के रूप में मनाया जाता है, जो हर 12 वर्ष में एक बार होता है। कुम्भ मेला में अमृत की ख्वाहिश और आस्था का प्रतीक मथा जाता है।

समाप्त
यह कथा यह दिखाती है कि आस्था, सच्चाई, और भगवान की कृपा से ही संसार में विजय प्राप्त की जा सकती है।